मत बाँटो इंसान को, हिन्दी कविता (Mat Banto Insane Ko Hindi Poem) 2022

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Mat Banto Insane Ko Hindi Poem

Mat Banto Insane Ko Hindi Poem

मंदिर-मस्जिद-गिरजाघर ने

बाँट लिया भगवान को ।

धरती बाँटी सागर बाँटा

मत बाँटो इंसान को ।।

अभी राह तो शुरू हुई है

मंज़िल बैठी दूर है।

उजियाला महलों में बंदी –

हर दीपक मजबूर है।

मिला न सूरज का संदेसा –

हर घाटी-मैदान को।

धरती बाँटी सागर बाँटा

मत बाँटो इंसान को ।

अब भी हरी भरी धरती है

ऊपर नील वितान है।

पर न प्यार हो तो जग सूना

जलता रेगिस्तान है।

अभी प्यार का जल देना है

हर प्यासी चट्टान को।

धरती बाँटी सागर बाँटा

मत बाँटो इंसान को ।

साथ उठें सब तो पहरा हो

हरसूरज का हर द्वार पर ।

उदास आँगन का हक हो –

खिलती हुई बहार पर।

रौंद न पाएगा फिर कोई

मौसम की मुसकान को ।

धरती बाँटी सागर बाँटा

मत बाँटो इंसान को ।

– विनय महाजन

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